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Sunday, 31 March 2013
FAST TRACK ADALATON KA QIYAM فاسٹ ترِک عدالتوں کا قیام
Saturday, 30 March 2013
غدار سوٹ کیس
غدار سوٹ کیس
ہمانشو کمار
کل میں نے ایک غدار وطن سوٹکیس دیکھا. میں دیکھتے ہی پہچان گیا کہ یہ غدار سوٹکیس ہے. اس کا رنگ سرخ تھا اور اس پر حج سفر کا نمبر بھی لکھا ہوا تھا. میں ایک ہی نظر میں سمجھ گیا کہ یہ تو پکا غدار سوٹکیس ہے. لال رنگ اپنے آپ میں میں ہی بغاوت کا ثبوت ہے. ارے اگر اس سوٹکیس کو بھارت میں رہنا ہے تو اسے اپنا رنگ گیروا کروا لینا چاہئے تھا. یا پھر سفید کروا لیتا تو ہم اسے گاندھيوادي مان کر برداشت کر لیتے. لیکن سرخ رنگ وہ بھی اس دور میں؟ جب کہ ہم لال اسٹریٹ. لال دہشت گردی اور لال نظریات کی وجہ سے راتوں کو جاگ جاتے ہیں. ایسے میں اس سوٹکیس کا سرخ ہونا بہت ہی خطرناک سیاسی رجحانات کی علامت ہے. یہ راج دروہی بھی ہو سکتا ہے. ممکن ہے یہ قانونی حیثیت سے قائم ریاست کے خلاف غیر وفادارانہ ذہنیت رکھتا ہو. میرا دل ہوا اسے اب پھانسی دے دی جانی چاہئے. کمبخت لال. ارے جب ہمارے چھتیس گڑھ کا عقلمند وزیر داخلہ لال سلام کہنے کے جرم میں سوامی اگنی ویش کو جیل میں ڈالنے کا اعلان کر سکتا ہے تو اس بیگ کو اپنے لئے سرخ رنگ کا انتخاب کتنا بڑا جرم ہے.
اور لال رنگ کے ساتھ حج کے سفر کا مسافر نمبر بھی. یہ تو انڈین مجاہدین اور چین کے گٹھ جوڑ کا مونہہ بولتا اور بین ثبوت ہے. ہوم منسٹري پاگل تھوڑے ہی ہے جو دہرئیہ نکسلیوں اور کٹر مذہبی مجاهدوں کے اتحاد کے ثبوت تیار کرنے کے لئے بیٹھے بیٹھے کہانیاں گڈھتے ہے. یہ دیکھ لو سامنے ثبوت لال سوٹکیس پر حج کا نمبر. اور کیا ثبوت چاہیے تمہیں انسانی حقوق اور سیکیولریزم کا نعرہ لگانے والے اندھو۔۔.
میں تو پہلے سے ہی رنگوں کی بنیاد پر فیصلہ کر دینے کے حق میں ہوں. دنتے واڑہ میں ایک بار ایک کھیل رہے ایک قبائلی بچے کے پیر میں پولیس نے گولی مار دی. میں ایس پی صاحب کے پاس گیا. میں نے کہا صاحب اس بچے کو تو ہم جانتے ہیں اسے گولی کیوں ماری؟ تو ایس پی صاحب کہنے لگے کہ اس نے سبز رنگ کی شرٹ پہنی ہوئی تھی اور اس رنگ کی شرٹ تو نکسلی پہنتے ہیں اس لئے ہم نے گولی مار دی. ایس پی صاحب کی ایک دم واجب بات ہے. میں نے ان سے کہا کہ اس ضلع میں جن کے پاس بھی سبز شرٹ ہے آپ سب کو گولی مار دیں گے؟ میرے پاس بھی ایک ہرا کرتا ہے. جس دن میں اپنا ہرا کرتا پہنوں اس دن آپ کے سامنے نا آووں نہیں تو آپ گولی مار دیں گے.
پر بھارت میں یہ چلتا ہے. آپ کا رنگ ہی آپ کی شناخت ہے. آپ کے اوپر قانون کا ڈنڈا آپ کا رنگ دیکھ کر چلتا ہے. حکومت جب مسلمانوں پر ڈنڈا چلاتی ہے تو ہندوؤں سے کہہ دیتی ہے چپ رہو یہ پاکستانی ہے، گویا پاکستان کو آپ ڈھول کی طرح پیٹ سکتے ہیں. ہاں امریکی یا جاپانی کو نہیں پیٹ سکتے. ہم اپنے پڑوسی کے ساتھ نہیں جی سکتے. دور والے آ کر ہمارے سر پر بیٹھ جائیں کوئی تکلیف نہیں.
پاکستانی مرے تو ہم بہت خوش ہوتے ہیں. ہم انسان کو انسان کی طرح نہیں مانتے. ہم انسان کو اس کی پیدائش کی جگہ کی بنیاد پر دوست یا دشمن سمجھتے ہیں. ہم ایسا کیوں کرتے ہیں پتہ نہیں. پر ہمارے باپ نے ایسا ہی کیا تھا اس لئے ہم بھی ایسا ہی کرتے ہیں جی. اچھے بچے بحث نہیں کرتے
اور لال رنگ کے ساتھ حج کے سفر کا مسافر نمبر بھی. یہ تو انڈین مجاہدین اور چین کے گٹھ جوڑ کا مونہہ بولتا اور بین ثبوت ہے. ہوم منسٹري پاگل تھوڑے ہی ہے جو دہرئیہ نکسلیوں اور کٹر مذہبی مجاهدوں کے اتحاد کے ثبوت تیار کرنے کے لئے بیٹھے بیٹھے کہانیاں گڈھتے ہے. یہ دیکھ لو سامنے ثبوت لال سوٹکیس پر حج کا نمبر. اور کیا ثبوت چاہیے تمہیں انسانی حقوق اور سیکیولریزم کا نعرہ لگانے والے اندھو۔۔.
میں تو پہلے سے ہی رنگوں کی بنیاد پر فیصلہ کر دینے کے حق میں ہوں. دنتے واڑہ میں ایک بار ایک کھیل رہے ایک قبائلی بچے کے پیر میں پولیس نے گولی مار دی. میں ایس پی صاحب کے پاس گیا. میں نے کہا صاحب اس بچے کو تو ہم جانتے ہیں اسے گولی کیوں ماری؟ تو ایس پی صاحب کہنے لگے کہ اس نے سبز رنگ کی شرٹ پہنی ہوئی تھی اور اس رنگ کی شرٹ تو نکسلی پہنتے ہیں اس لئے ہم نے گولی مار دی. ایس پی صاحب کی ایک دم واجب بات ہے. میں نے ان سے کہا کہ اس ضلع میں جن کے پاس بھی سبز شرٹ ہے آپ سب کو گولی مار دیں گے؟ میرے پاس بھی ایک ہرا کرتا ہے. جس دن میں اپنا ہرا کرتا پہنوں اس دن آپ کے سامنے نا آووں نہیں تو آپ گولی مار دیں گے.
پر بھارت میں یہ چلتا ہے. آپ کا رنگ ہی آپ کی شناخت ہے. آپ کے اوپر قانون کا ڈنڈا آپ کا رنگ دیکھ کر چلتا ہے. حکومت جب مسلمانوں پر ڈنڈا چلاتی ہے تو ہندوؤں سے کہہ دیتی ہے چپ رہو یہ پاکستانی ہے، گویا پاکستان کو آپ ڈھول کی طرح پیٹ سکتے ہیں. ہاں امریکی یا جاپانی کو نہیں پیٹ سکتے. ہم اپنے پڑوسی کے ساتھ نہیں جی سکتے. دور والے آ کر ہمارے سر پر بیٹھ جائیں کوئی تکلیف نہیں.
پاکستانی مرے تو ہم بہت خوش ہوتے ہیں. ہم انسان کو انسان کی طرح نہیں مانتے. ہم انسان کو اس کی پیدائش کی جگہ کی بنیاد پر دوست یا دشمن سمجھتے ہیں. ہم ایسا کیوں کرتے ہیں پتہ نہیں. پر ہمارے باپ نے ایسا ہی کیا تھا اس لئے ہم بھی ایسا ہی کرتے ہیں جی. اچھے بچے بحث نہیں کرتے
कल
मैंने एक देशद्रोही सूटकेस देखा . मैं देखते ही पहचान गया कि यह देशद्रोही
सूटकेस है . उसका रंग लाल था और उस पर हज यात्रा का नम्बर भी लिखा हुआ था .
मैं एक ही नजर में समझ गया कि यह तो पक्का देशद्रोही सूटकेस है . लाल रंग
अपने आप में में ही देशद्रोह का सबूत है . अरे अगर इस सूटकेस को भारत में
रहना है तो इसे अपना रंग केसरिया करवा लेना चाहिये था . या फिर सफ़ेद करवा
लेता तो हम उसे गांधीवादी मान कर सहन कर लेते . लेकिन लाल रंग वो भी इस दौर
में ? जब कि हम लाल गलियारे . लाल आतंक और लाल विचारधारा के कारण रातों को
जाग जाते हैं . ऐसे में इस सूटकेस का लाल होना बहुत ही खतरनाक राजनैतिक
रुझान का परिचायक है . यह राजद्रोही भी हो सकता है . सम्भव है यह विधि
द्वारा स्थापित राज्य के प्रति अप्रीति उत्पन्न करने की मानसिकता रखता हो .
मेरा मन हुआ इसे अभी फांसी दे दी जानी चाहिये . कमबख्त लाल . अरे जब हमारे
छत्तीसगढ़ का अकलमन्द गृहमंत्री लाल सलाम कहने के जुर्म में स्वामी
अग्निवेश को जेल में डालने की घोषणा कर सकता है तब इस बैग का अपने लिये लाल
रंग चुनना कितना बड़ा जुर्म है .
और लाल रंग के साथ हज यात्रा का यात्री नम्बर भी . ये तो इंडियन मुजाहिदीन
और चीन के गठजोड़ का साक्षात् सबूत है . होम मिनिस्ट्री पागल थोड़े ही है
जो नास्तिक नक्सलियों और धर्मान्ध मुजाहिदीनों के गठजोड़ के सबूत तैयार
करने के लिये बैठे बैठे कहानियां गढते है. ये देख लो सामने सबूत लाल सूटकेस
पर हज का नम्बर . और क्या सबूत चाहिये तुम्हें छद्म धर्मनिरपेक्षवादी
अन्धों .
मैं तो पहले से ही रंगों के आधार पर फैसले कर देने के
पक्ष में हूं . दंतेवाड़ा में एक बार एक खेल रहे एक आदिवासी बच्चे के पैर
में पुलिस ने गोली मार दी . मैं एस पी साहब के पास गया . मैंने कहा साहब उस
बच्चे को तो हम जानते है उसे गोली क्यों मारी ? तो एस पी साहब कहने लगे कि
उसने हरे रंग की शर्ट पहनी हुई थी और इस रंग की शर्ट तो नक्सलवादी पहनते
हैं इसलिये हमने गोली मार दी . एस पी साहब की एकदम वाजिब बात है . मैंने
उनसे कहा कि इस जिले में जिनके पास भी हरी शर्ट है आप सबको गोली मार
देंगे ? मेरे पास भी एक हरा कुरता है . जिस दिन मैं अपना हरा कुरता पहनूं
उस दिन आपके सामने ना आऊँ नहीं तो आप गोली मार देंगे .
पर भारत
में यह चलता है . आपका रंग ही आपकी पहचान है .आपके ऊपर क़ानून का डंडा आपका
रंग देख कर चलता है . सरकार जब मुसलमानों पर डंडा चलाती है तो हिंदुओं से
कह देती है चुप रहो यह पाकिस्तानी है , गोया पाकिस्तानी को आप ढोल की तरह
पीट सकते हैं . हाँ अमरीकी या जापानी को नहीं पीट सकते . हम अपने पड़ोसी के
साथ नहीं जी सकते . दूर वाले आकर हमारे सिर पर बैठ जायें कोई तकलीफ नहीं .
पाकिस्तानी मरे तो हम बहुत खुश होते हैं . हम इंसान को इंसान के तरह नहीं
मानते . हम इंसान को उसके जन्म के स्थान के आधार पर दोस्त या दुश्मन मानते
हैं. हम ऐसा क्यों करते हैं पता नहीं . पर हमारे बाप ने ऐसा ही किया था
इसलिये हम भी ऐसा ही करते हैं जी . अच्छे बच्चे बहस नहीं करते
कल
मैंने एक देशद्रोही सूटकेस देखा . मैं देखते ही पहचान गया कि यह देशद्रोही
सूटकेस है . उसका रंग लाल था और उस पर हज यात्रा का नम्बर भी लिखा हुआ था .
मैं एक ही नजर में समझ गया कि यह तो पक्का देशद्रोही सूटकेस है . लाल रंग
अपने आप में में ही देशद्रोह का सबूत है . अरे अगर इस सूटकेस को भारत में
रहना है तो इसे अपना रंग केसरिया करवा लेना चाहिये था . या फिर सफ़ेद करवा
लेता तो हम उसे गांधीवादी मान कर सहन कर लेते . लेकिन लाल रंग वो भी इस दौर
में ? जब कि हम लाल गलियारे . लाल आतंक और लाल विचारधारा के कारण रातों को
जाग जाते हैं . ऐसे में इस सूटकेस का लाल होना बहुत ही खतरनाक राजनैतिक
रुझान का परिचायक है . यह राजद्रोही भी हो सकता है . सम्भव है यह विधि
द्वारा स्थापित राज्य के प्रति अप्रीति उत्पन्न करने की मानसिकता रखता हो .
मेरा मन हुआ इसे अभी फांसी दे दी जानी चाहिये . कमबख्त लाल . अरे जब हमारे
छत्तीसगढ़ का अकलमन्द गृहमंत्री लाल सलाम कहने के जुर्म में स्वामी
अग्निवेश को जेल में डालने की घोषणा कर सकता है तब इस बैग का अपने लिये लाल
रंग चुनना कितना बड़ा जुर्म है .
और लाल रंग के साथ हज यात्रा का यात्री नम्बर भी . ये तो इंडियन मुजाहिदीन और चीन के गठजोड़ का साक्षात् सबूत है . होम मिनिस्ट्री पागल थोड़े ही है जो नास्तिक नक्सलियों और धर्मान्ध मुजाहिदीनों के गठजोड़ के सबूत तैयार करने के लिये बैठे बैठे कहानियां गढते है. ये देख लो सामने सबूत लाल सूटकेस पर हज का नम्बर . और क्या सबूत चाहिये तुम्हें छद्म धर्मनिरपेक्षवादी अन्धों .
मैं तो पहले से ही रंगों के आधार पर फैसले कर देने के पक्ष में हूं . दंतेवाड़ा में एक बार एक खेल रहे एक आदिवासी बच्चे के पैर में पुलिस ने गोली मार दी . मैं एस पी साहब के पास गया . मैंने कहा साहब उस बच्चे को तो हम जानते है उसे गोली क्यों मारी ? तो एस पी साहब कहने लगे कि उसने हरे रंग की शर्ट पहनी हुई थी और इस रंग की शर्ट तो नक्सलवादी पहनते हैं इसलिये हमने गोली मार दी . एस पी साहब की एकदम वाजिब बात है . मैंने उनसे कहा कि इस जिले में जिनके पास भी हरी शर्ट है आप सबको गोली मार देंगे ? मेरे पास भी एक हरा कुरता है . जिस दिन मैं अपना हरा कुरता पहनूं उस दिन आपके सामने ना आऊँ नहीं तो आप गोली मार देंगे .
पर भारत में यह चलता है . आपका रंग ही आपकी पहचान है .आपके ऊपर क़ानून का डंडा आपका रंग देख कर चलता है . सरकार जब मुसलमानों पर डंडा चलाती है तो हिंदुओं से कह देती है चुप रहो यह पाकिस्तानी है , गोया पाकिस्तानी को आप ढोल की तरह पीट सकते हैं . हाँ अमरीकी या जापानी को नहीं पीट सकते . हम अपने पड़ोसी के साथ नहीं जी सकते . दूर वाले आकर हमारे सिर पर बैठ जायें कोई तकलीफ नहीं .
पाकिस्तानी मरे तो हम बहुत खुश होते हैं . हम इंसान को इंसान के तरह नहीं मानते . हम इंसान को उसके जन्म के स्थान के आधार पर दोस्त या दुश्मन मानते हैं. हम ऐसा क्यों करते हैं पता नहीं . पर हमारे बाप ने ऐसा ही किया था इसलिये हम भी ऐसा ही करते हैं जी . अच्छे बच्चे बहस नहीं करते
और लाल रंग के साथ हज यात्रा का यात्री नम्बर भी . ये तो इंडियन मुजाहिदीन और चीन के गठजोड़ का साक्षात् सबूत है . होम मिनिस्ट्री पागल थोड़े ही है जो नास्तिक नक्सलियों और धर्मान्ध मुजाहिदीनों के गठजोड़ के सबूत तैयार करने के लिये बैठे बैठे कहानियां गढते है. ये देख लो सामने सबूत लाल सूटकेस पर हज का नम्बर . और क्या सबूत चाहिये तुम्हें छद्म धर्मनिरपेक्षवादी अन्धों .
मैं तो पहले से ही रंगों के आधार पर फैसले कर देने के पक्ष में हूं . दंतेवाड़ा में एक बार एक खेल रहे एक आदिवासी बच्चे के पैर में पुलिस ने गोली मार दी . मैं एस पी साहब के पास गया . मैंने कहा साहब उस बच्चे को तो हम जानते है उसे गोली क्यों मारी ? तो एस पी साहब कहने लगे कि उसने हरे रंग की शर्ट पहनी हुई थी और इस रंग की शर्ट तो नक्सलवादी पहनते हैं इसलिये हमने गोली मार दी . एस पी साहब की एकदम वाजिब बात है . मैंने उनसे कहा कि इस जिले में जिनके पास भी हरी शर्ट है आप सबको गोली मार देंगे ? मेरे पास भी एक हरा कुरता है . जिस दिन मैं अपना हरा कुरता पहनूं उस दिन आपके सामने ना आऊँ नहीं तो आप गोली मार देंगे .
पर भारत में यह चलता है . आपका रंग ही आपकी पहचान है .आपके ऊपर क़ानून का डंडा आपका रंग देख कर चलता है . सरकार जब मुसलमानों पर डंडा चलाती है तो हिंदुओं से कह देती है चुप रहो यह पाकिस्तानी है , गोया पाकिस्तानी को आप ढोल की तरह पीट सकते हैं . हाँ अमरीकी या जापानी को नहीं पीट सकते . हम अपने पड़ोसी के साथ नहीं जी सकते . दूर वाले आकर हमारे सिर पर बैठ जायें कोई तकलीफ नहीं .
पाकिस्तानी मरे तो हम बहुत खुश होते हैं . हम इंसान को इंसान के तरह नहीं मानते . हम इंसान को उसके जन्म के स्थान के आधार पर दोस्त या दुश्मन मानते हैं. हम ऐसा क्यों करते हैं पता नहीं . पर हमारे बाप ने ऐसा ही किया था इसलिये हम भी ऐसा ही करते हैं जी . अच्छे बच्चे बहस नहीं करते
Thursday, 28 March 2013
MEHFILE ILMO DANISH SEMINAR
عظمت رسالت ۖ کا دفاع ملت اسلامیہ کی اولین ذمہ داری ہے۔
محفل علم و دانش سے وہاج بابا ایڈوکیٹ اور ایاز الشیخ کا خطاب
گلبرگہ :''آج مغرب سمیت پوری دنیا اسلام
دشمنی پر کمربستہ ہوچکی ہے ۔ ہمارے حبیب صلی اللہ علیہ وسلم کی عظمت و ناموس کے خلاف کتابیں، مضامین، ویڈیو اور سوشیل نیٹورک جیسے یو ٹیوب فیس بک پرتوہین آمیز مواد شائع کرتے ہیں ۔نبی کریم ۖ کی عظمت وناموس پر حملہ آور ہونے والوں کو یہ علم ہونا چاہئے کہ مسلمان اپنے نبی کی حرمت پر کٹ مر سکتا ہے،لیکن اس کو کسی صورت گوارا نہیں کرسکتا کیونکہ اسکے جذبہ ایمانی اور آپ ۖکے عظیم الشان حق کا بنیادی تقاضا ہے۔ جب عظمت رسالت کے خلاف سازشوں کا بازار گرم کیا جارہا ہو اورآقائے نامدار ۖ کو اپنی ہر شے سے محبوب رکھنے کا دعوی کرنے والا مسلم ان سنگین حالات میں سکون اور اطمینان سے بیٹھا رہے ، یہ تصور ہی انتہائی خوفناک ہے''۔ ان خیالات کا اظہار شیخ قوام الدین جنیدی عرف ایڈوکیٹ وہاج بابا نے مجلس تعمیر ملت گلبرگہ کے زیر اہتمام منعقدہ ہفتہ واری 'محفل علم و دانش' سے اپنے صدارتی خطاب میں کیا۔ چھوٹے قریش فنکشن ہال نزد بڑی مسجد مومن پورہ میں منعقد اس محفل کا موضوع ''عظمت رسالت ۖ کے خلاف عالمی سازشیں اور امت مسلمہ کی ذمہ داریاں '' تھا۔ آپ نے عاشق رسول ۖ شہید غازی علم دین کا تذکرہ کرتے ہوئے کہا کہ انگریزوں کے دور حکومت میں گستاخ رسول کو جہنم رسید کرنے پر انہیں سزائے موت دی گئی۔ تدفین کے وقت علم دین شہید کے والد نے علامہ اقبال سے علم دین کی نماز جنازہ پڑھانے کی درخواست کی جس پر علامہ اقبال نے ان سے کہا کہ وہ بہت گناہ گار انسان ہیں، اس لئے اتنے بڑے شہید کی نماز جنازہ وہ نہیں پڑھا سکتے۔غازی علم دین شہید کی نماز جنازہ ہندوستان کی تاریخ کی سب سے بڑی نماز جنازہ تھی جس میں لاکھوں لوگوں نے شرکت کی۔ ہر ایک کی خواہش تھی کہ عاشق رسول ۖ کے جنازے کو کندھا دے۔ علامہ اقبال نے غازی علم دین شہید کی میت کو کندھا دیا اور اپنے ہاتھوں سے انہیں قبر میں اتارا۔ اس موقع پر علامہ اقبال نے نم آنکھوں کے ساتھ کہا ۔ ترکھان کا بیٹا آج ہم پڑھے لکھوں پر بازی لے گیا اور ہم دیکھتے ہی رہ گئے۔ وہاج بابا نے مزید کہا کہا کہ مغربی منصوبہ سازوں کی خواہش یہ ہے کہ مغرب میں اسلام کو پھیلنے سے روکاجائے۔ اس غرض سے وہ مسلمانوں اور ان کے پیغمبر ۖ کی عظت کے خلاف مسلسل سازشوں میں مصروف ہیںکہ مغربی عوام اسلام اور مسلمانوں سے متنفر ہو جائیں، اسلام کا ہمدردانہ مطالعہ نہ کر سکیںاور یوں ان کے اسلام قبول کرنے کے مواقع کم ہوجائیں۔ آخر میں انہوں نے کہاکہ ان مجرمانہ حرکات سے جناب رسالت مآب ۖ کو کچھ نقصان نہیں پہنچاسکتی کہ اللہ پاک نے خودآپ کی شان بڑھائی ہے ، آپ کے ذکرکوبلندکیاہے،آپ کے مخالفین کے لیے ذلت ورسوائی مقدرکی ہے ،تمسخراڑانے والوںکواللہ پاک نے اپنے انجام تک پہنچایاہے،اس لیے جب کوئی گستاخ ہمارے نبی ۖکی شان میں گستاخی کرے گا تواس سے ہمارے نبی کی تنقیص نہیں ہوگی بلکہ ان کے مقام اورمرتبہ میں اضافہ ہوگا ۔
معروف صحافی و اسکالر جناب ایاز الشیخ، چئرمین امام غزالی ریسرچ فاونڈیشن نے اپنی کلیدی خطاب میں کہا کہ حضور سرور عالم ۖا سے عقیدت ومحبت رکھنا ہرمسلمان پر لازم ہے اور محبت بھی ایسی کہ جس کے سامنے دنیا کی ہر عزیز اور محبوب چیز ہیچ ہو اگرحضور ۖکی محبت سے بڑھ کر مسلمانوں کی محبت ،مادیت اور دنیا کی چیزوں سے غالب رہی تو یہ اسلام کی راہ شمار نہ ہوگی بلکہ ہلاکت کا راستہ ہوگا۔ مسلمانوں پر امتحانات پر امتحانات آ رہے ہیں کبھی امت مسلمہ پر آگ وبارود کی بارش کرکے مسلمانوں کا امتحان لیا جاتاہے کبھی شعائرِ اسلام اور مقدس مقامات کے خلاف ہرزہ سرائی کرکے مسلمانوں کی دینی حمیت اور اسلامی غیرت کا جائزہ لیا جاتاہے ان تمام مراحل میں امت مسلمہ کو خوابیدہ پاکر دشمنانِ اسلام اور شیطان لعین کی روحانی ذریت رحمت دو عالم ۖ کے نام لیواں پر مسلسل حملے کررہی ہے ۔ دشمنانِ اسلام نے مسلمانوں کی ایمانی غیرت ودینی حمیت کا امتحان لیتے ہوئے محسنِ انسانیت ۖکی شانِ اقدس میں گستاخی اور آپ کی عظمت کے خلاف سازشیں کرکے خبثِ باطن کابرملا اظہار کر رہے ہیں ۔ دوسری جانب امت میں کچھ مصلحت پسند مسلمان ان سازشوں کے خلاف سکوت اختیار کرنے کی تلقین کرتا ہے۔ حالانکہ اس قسم کی گستاخانہ حرکت اگر کوئی انسان ہماری ذات ہمارے والدین کے خلاف کرے تو ہمارے جذبات میں لازما ارتعاش آجاتاہے کیا ہمیں ہماری جانیں ،عزیز واقارب اور دنیاوی مال ومفادات حضور ۖسے زیادہ عزیز ہوچکے ہیں؟ کیا ہم قانون کے دائرہ میں رہ کر ، موجود ذرائع کو استعمال کرکے پرامن احتجاج نہیں کرسکتے ۔
انہوں نے مزید کہا کہ دشمنان اسلام روز اول سے ہی عظمت رسالت کے خلاف سازشوں میں مصروف ہیں ۔ آج امریکہ اور مغرب ان کے سرپرست ہیں۔ انسانی حقوق اور اظہار رائے کی آزادی کی بات کرنے والے ان وحشی بہروپیوں کو کب سمجھ میں آئے گا انسانی حقوق کی سب سے بڑی خلاف ورزی تو ڈیڑھ ارب آبادی کو ناقابلِ برداشت ایذا پہنچانا ہے جو مغرب میں ایک فیشن سا بن گیا ہے۔ نائن الیون کے بعد امریکا اور مغربی ممالک نے اسلحہ ٹیکنالوجی کے ساتھ ساتھ جدید میڈیا ٹیکنالوجی کا سہارا لے کر اسلام ، مسلمانوں اور ذات اقدس کے خلاف پروپیگنڈا مہم شروع کر رکھی ہے۔ اس کے تھنک ٹینک ووقتاً فوقتاً شر انگیزیاں اپنے گرگوں کے ذریعہ پھیلاتے رہتے ہیں تاکہ امت مسلمہ کے جذبات کی شدت کو جانچا جاسکے۔ در اصل سوویت یونین کو ختم کرنے کے بعد امریکی طاغوت کے نیو ورلڈ آرڈر کی راہ میں اسلام سب سے بڑی رکاوٹ ہے۔ ایاز الشیخ نے مزید کہا کہ رسول پاک صلی اللہ علیہ وسلم کی توہین کرنے والے کو معاف کردینے کا اختیار کسی کے پاس بھی نہیں۔ اس جرم کا ارتکاب کرنے والا لازما سزا پائے گا، دنیا میں بھی اور آخرت میں بھی۔ والی دو جہاں صلی اللہ علیہ وسلم کی عظمت اورناموس کے مسئلہ پر کوئی مسلمان سمجھوتہ نہیں کرسکتا، مسلمان بے عمل ہوسکتا ہے اوربد عمل بھی ہوسکتاہے لیکن عشق رسالت ۖ سے خالی ہر گز نہیں ہوسکتا ۔ عظمت رسالت ۖ کا دفاع اور مقابل آنے والے ہر شر کا دفاع اس کی ذمہ داری ہے۔
ایاز لشیخ نے اپنے خطاب کے آخر میں کہا کہ عظمت رسالت ۖ کے خلاف سازشوں کا مقابلہ کرنے کے لئے مسلمان پنے دین سے محکم وابستگی اختیار کریں اور اپنی انفرادی اور اجتماعی زندگی میں سنتوں پر عمل کریں کہ یہی ان کے لئے منبع قوت ہے ۔ اپنی سوچ میں فکرآخرت کو جگہ دیں ،سیرت نبوی ۖکاگہرائی سے خود مطالعہ کریں،سیرت پر مشتمل کتابیں اپنے گھروںمیںلائیں اوربیوی بچوںکو پڑھ کر سنائیں، اپنے معاشرے میں سنت نبوی کو عام کریں۔ اس طرح اپنے آقا ۖکی سنت کو نمونہ بناکر دنیا کوبتادیں کہ ہم اپنے نبی کے حقیقی محب ہیں۔ آپس کے فروعی اختلافات کو بھلا کر عظت رسالت کے دفاع کی بنیاد پرمتحد ہو جائیں۔مغرب کے اسلام دشمن پروپیگنڈے کا بروقت منہ توڑ جواب دینے کی صلاحیت کو پروان چڑھائیں۔ ٹیکنالوجی میں مغرب سے مرعوبیت کے بجائے اس میں مہارت حاصل کرنے کی کوشش کی جائے۔ افرادی صلاحیتوں اور میڈیا کی قوت کو فروغ اسلام کے لیے استعمال کریں۔ سیرت کے پیغام کو غیرمسلموںتک پہنچاکر دین کی خدمت انجام دیں کہ یہ وقت کا تقاضا ہے ۔
قبل ازیں محفل کا آغاز نوجوان قاری محمد کی تلاوت کلام پاک سے ہوا۔ نعت پاک کا نذرانہ جناب خواجہ گیسودراز اور تبریز نے پیش کیا۔ محمد سمیر اقبال، کوو آرڈنیٹر پروگرامس نے محافل کی غرض و غایت بتائی اور نظامت کے فرائض انجام دئے۔ اس محفل میں شرکت کے لئے شہر کے مختلف حصوں سے اہل علم حضرات نے شرکت کی جس میں نوجوانوں کی ایک کثیر تعداد شامل تھی۔ اس مجفل کی ویڈیو ریکارڈنگ یو ٹیوب پہ www.youtube.com/igrfoundation پر ملاحظہ اور ڈاونلوڈ کی جاسکتی ہے۔
Saturday, 16 March 2013
Monday, 11 March 2013
MERA SAR NAHIN RAHEGA MUJHE ISKA GHAM NAHIN HAI
To be a ghasalan is to be ‘called’
To be a ghasalan is to be ‘called’
She took to the profession of bathing dead bodies out of passion. She is one among the numerous ghasalans (corpse bathers) in the city who believe the deceased deserve a decent farewell, says Ayesha Tabassum
There should be no delay in
preparing the body, i.e. washing,
shrouding and burial of the deceased,
supported by the Prophet’s
(PBUH) instruction,
“Hasten the funeral rites.”
(Collected in all six books
of Hadith: Sahih Al-Bukhari,
Vol 2, Pg 255, #401)
It was 2.30 am. The moon was still and bright. The night, silent. A group of people came calling. 36-year-old Zarin Taj, an Arabic teacher, and mother of four was fast asleep. But she was prepared for theknockonthedoor.Sheknew'they' would come and people like them would keep coming....till the end of herlife.Forshehadchosenthispath.It was her calling in life.
The people who knocked were from the house of a young woman. Some time during the placid night, when the world was busy, she had succumbed to burn injuries sustained during an accident in her home. According to her faith she had to be buried before the morning light. And that cannot happen without Taj -a ghasalan(corpse-bather).
“I cannot forget her,” recalls Taj. It was her first ‘call’ as an independent ghasalan.Though she had worked as an apprentice for five years earlier and was well-versed in the ritualistic bathing of the deceased, she was anxious. “In the early morning hours, I was slowly moving her limbs so that water could touch every inch of the body.” She remembers clearly the skin that was peeling off the body; the mother of the dead woman who refused to touch the lifeless body of her owndaughter. She remembers the dead woman’s missing fingers - “Index and middle finger of the right hand”. It took her one and a half hours to prepare the deceased for her final journey. “I don’t know how I got the courage to stand strong and handle the body,” says Taj who remembers well the “eerie silence at that hour of the day. But I knew God had blessed me with courage. Once I completed the ritual,Iwassatisfiedandtherewassubtle happiness – I could do this job and I knew I was meant for it.”
It has been four years since that “first assignment”. Taj has bathed more than 500 deceased Muslim women in Chikmagalur and Bangalore where she moved in two years ago and was appointed a ghasalan by the Basavanagudi mosque.
THE BEGINNING It all started in 2004 in Chikmagalur. Taj was an Arabic teacher, married to Syed Usman, also an Arabic teacher. (Now,he also does the odd painting jobs). She was inspired by her neighbour Sabira Bi, a ghasalan for close to 30years.“Iusedtoobserveherwithinterest because she was an old lady who lived alone,” recalls Taj. “Though she had kids, she preferred to stay all by herself because of her ‘duty’. Sabira Bi’s devotion to her duty is what enchantedme.”BeinganArabicteacher, Taj says she was aware of the importance of bathing corpses, according to the Holy Book. “I decided to help Sabira Bi. It wasn’t for money.”
Taj began to accompany Bi whenever she went to bathe a corpse. “Sabira aapa was a true mentor and for five years I worked under her. She was very happy.” Taj never took a stipend or asked for a share of Bi's earnings.
The decision to become a corpse batherwasnotaneasyoneforTaj.But, it was not difficult either.
“My mother has been a ghasalan
for nearly 30 years,” says her husband Usman. So when Taj asked him if she could be one, it did come as a surprise. “I was a bit apprehensive about her takingthisupasaprofession.Itisn’tan easy job. I knew she could be called at any time of the day. But then I realised she was doing it for the sake of God. She wanted to serve those (the dead) who really needed her. I did not want her to earn any money. I was earning enough and we were satisfied. But she insisted that she wanted to do it because of her interest, so I supported her.” Usman accompanied Taj on her first assignment four years ago and brought her back home just after day break. “Even to this day, I cannot sleep when she is called for a funeral that’s early in the morning. She has to bathe the body before the morning prayers. If the deceased’s family members are coming to pick her up, then there must be women in the group. Else I can’tlethergo.Butsofar,womenhave always accompanied her.”
THE GHUSAL (THE BATH) When the news of the death in the family is announced, the first thing to do is to recite the verse from the Quran (2:156): Inna lil-laahi wa innaa ilayhi raaji’oon. (Truly! To Allah we belong and truly, to Him we shall return).
‘The return’ has to be hastened. Thefuneralcannotwaitformaximum number of people to gather. “That’s a big responsibility. That is my biggest fear – that I should not be delayed. My delay will cause the funeral to be delayed,” says Taj.
When she receives a call, the first thing she does is pray to God to help her perform the duty. She then rushes to complete her responsibility irrespective of the time of the day. Kept ready for her are: Ittar (natural scents), surma, soap, Reetha seeds, gloves, two pieces of cloth measuring 2.5mt X 2.5mt, two large bath towels, camphor,Abirpowder,onechatayee(straw mat) and a coffin cloth that is one foot longer at both ends . “I am not supposed to touch the body with bare hands.That’swhathasbeenwrittenin the Bihishti Zevar (A woman’s jewel), the book that is the encyclopedia about women’s rituals and services. I wear gloves and my work starts.”
What some might consider an unclean chore, Taj has voluntarily accepted it as her calling. “The body should not have any trace of feces and urine,”shesays.Shescrubsthestillhuman, slowly and meticulously; water is poured on the stomach and “the body is made to sit three times, so that all the contents of the stomach and intestine come out. And I clean, again, thoroughly.” She also pours camphor water and makes the deceased do their last wudu (ablution). “Nobody likes to bestaredatwhentheyarenaked,”says Taj. “I am sure they wouldn't want it even after they are dead.” She sees them, but doesn't look. All through the ritualistic bathing Taj prays for the “after-life of the deceased. The dead person was once alive and now is lying helpless waiting to be bathed, that’s when dua keeps coming to my lips. I just pray that God makes their life after death easy,” she says. Finally, sherecitesanArabicversetopurifythe body. She ties their hair, sprinkles Abir (a mehendi green powder with pungent smell) and rubs camphorwateronthesoles,ankles,palms, elbows, nose and forehead – parts of the body that touch the floor during prostration when offering namaaz. Then two pieces of cloth are wrapped aroundthebodyandthecoffinclothis covered over it.
“Notevenonestrandofhaircanbe visible. Extra cloth is left at the waist so that it is easy to lower them into the grave,” says Taj. But the ghasalan’s job doesn’t end here. After all those gathered have seen the corpse for the last time, she covers the face and ties a cloth around it.
Taj returns home with the bath towels and two pieces of cloth and the hadya (payment): Rs.200-500. She bathes,andoffersnamaz.“IaskGodto forgive me if the body was hurt or the soulfelttroubledbecauseofthemovements during the entire procedure. I ask Him to forgive me if I had missed anything or had made a mistake.”
A PROFESSION FOR PASSION “In Bangalore, there are about 300-400 mosques,” says Mohd Maqsood ImranRashadi,Khateeb–o–Imam,Jamia Masjid of Bangalore. A few of them appointghasalans for a monthly salary of Rs 3,000-4,000.” But some ghasalans are not attached to the mosque. However, whether appointed by the mosque or not, a ghasalan has to inform the authorities before going to the deceased’s house. “We need to get a slip of permission from the mosque because at times it could alsobeapolicecase.Sothemosqueauthorities need to know where we are going,” says Taj. Women take up this work not because it is a family tradition, but because they feel it’s their calling -like Taj.
Though a challenging job, most of the ghasalans believe this is the path to please the Almighty. “The (dead) person is helpless. When we dress her in the coffin, we believe that Allah will dress us ghasalans with clothes in heaven. This is the satisfaction that keepsmegoing,”saysTaj.Nowher23-year-old daughter Heena Kauser too is following her mother’s footsteps. She started accompanying her mother when she was just 19-years-old. “I have helped my mother with 25 cases sofar,”saysHeena.“Theveryfirsttime Iwentwaswhenourneighbourpassed away. I was uncomfortable to touch the corpse initially....but now I am not.” The mother has been mentoring her daughter and is confident Heena can manage.
“Just in case I am not able to go, I want her to be ready. Anybody can needus...atanytime,”saysTaj.Shebelieves that every corpse deserves a good bath before their final journey and she is willing to give them one as it is her calling in life.
Syed Usman (R) was anxious about his wife Taj (L) becoming a ghasalan, but he supported her
courtesy: Times of india
http://epaper.timesofindia.com/Default/Scripting/ArticleWin.asp?From=Archive&Source=Page&Skin=MIRRORNEW&BaseHref=BGMIR/2013/03/10&PageLabel=4&EntityId=Ar00400&ViewMode=HTML
Sunday, 10 March 2013
بنگلہ دیش میں جماعت اسلامی پر ظلم و تشدد
بنگلہ دیش میں جماعت اسلامی پر ظلم و تشدد
عابدہ رحمانی
مشرقی پاکستان ،پاکستان کے بازو کو ٹوٹتے ہوئے اور اسکو بنگلہ دیش بنتے ہوئے میں نے اپنی ان گناہگار آنکھوں سے دیکھا اور دل کی گہرائیوں سے محسوس کیا -ڈھاکے میں بھرا پرا گھر اور جائدادیں چھوڑ کر جانیں بچا کر مغربی پاکستان یا موجودہ پاکستان آئے- مدتوں تک میرے منہ پر بنگلہ دیش کا نام نہیں اتا تھا اور یہ نام ادا کرتے ہوئے دل سے درد کی شدید ٹھیس سی اٹھتی تھی- لیکن بنگلہ دیش پچھلے 41 سال سے ایک حقیقت ہے اور تمام قتل وخون، تباہی و بربادی اور ماضی کی غلطیوں ، تلخیوں کو بھلا کر ہم اس پر مطمئن ھوئے کہ وہ ہمارا برادر اسلامی ملک ہے - 41 سال گزرنے کے بعد عوامی لیگ اور حسینہ واجد کواز سر نو یہ اذیت شروع ہوئی کہ جماعت اسلامی کو متحدہ پاکستان کی حمائت اور بنگلہ دیش کے قیام کی مخالفت کی کڑی سزا دی جائے- یہ ایک تلخ حقیقت ہے کہ جماعت اسلامی نے متحدہ پاکستان کی حمائت کی تھی اور بنگلہ دیش کے قیام کی مخالفت کرتے ہوئے اپنے اس مقصد کے لئے غیر بنگالیوں کے ہمراہ بے پناہ قربانیاں دی تھیں -انکے گروپ الشمس اور البدر کا مکتی باہنی کی قتل گاہوں میں غیر بنگالیوں اور پاکستانی فوجیوں کے ہمراہ بے دریغ خون بہایا گیا تھا - تباہی و بربادی انکا مقدر ٹہری-انکا قصور محض متحدہ پاکستان کا دفاع تھا وہ اس ملک کی تقسیم اور نئے ملک کی تشکیل کے خلاف تھے انکا یہ فعل اسوقت پاکستان کی حبالوطنی کے لئے تھا -
بنگلہ دیش کے معرض وجود میں آنے کے بعد یہ جماعت اسلامی بنگلہ دیش کے نام سے اپنے تحریکی اور سیاسی کام نبھانے لگی - میرا پھر ڈھاکہ یا بنگلہ دیش جانا تو نہیں ہوا لیکن شمالی امریکہ میں جن بنگالی بھائی بہنوں سے تعلق قائم ہوا تو انکے اسلامی تشخص اور گرم جوشی کو دیکھ کر بیحد خوشی ہوئی وہ لوگ ماشاءاللہ دینی کاموں میں کافی سر گرم اور پیش پیش ہیں اور انکا اسلامی تشخص لا جواب ہے- جماعت اسلامی نے اپنے ملک میں لادینی اور سیکولر نظریات کی توڑ کی اور اسلامی تشخص اور نظریات کو قائم کرنیکی جدوجہد جاری رکھی - معاشی ، تعلیمی اور فلاحی میدانوں میں اپنی کوششیں جاری رکھیں- گو کہ یہ اپنے ملک کی سیاست میں کافی متحرک جماعت ہے بلکہ عوامی لیگ کی مخالف پارٹی میں بی این پی کے ساتھ انکا اتحاد ہے- اور 2001 میں ایوان اقتدار کا حصہ بنے-اور اچھی کارکردگی دکھائی اپنی اہلیت اور ایمانداری سےعوام کا دل جیتا جماعت کے امیر مطیع الرحمن نظامی اور سکرٹری جنرل علی احسن مجاہد مرکزی کابینہ کے رکن تھے انکی کارکردگی ، شرافت و دیانت کا پورا بنگلہ دیش معترف ہے--ٹرانسپیرنسی انٹرنیشنل نے بھی انکی بیحد تعریف کی-
41 - سال گزرنے کے بعد عوامی لیگ غالبا پھر ایک بار بنگلہ دیش میں اپنا زور اور قوت دکھا رہی ہے اور اپنے پرانے حساب بیباق کر رہی ہے- اگر واقعی انصاف کیا جائے تو حقیقت یہ ہے کہ مکتی باہنی نے جو ظلم و تشدد کیا تھا وہ بے حساب اور بے پناہ ہے- اسکا حساب تو اب شائد روز قیامت ہی ہوگا- وقت کے ساتھ کافی کچھ بدل چکا تھا اور بہت سے تائب بھی ہوگئے - ہیں تو مسلمان ہی اور مسلمانوں کے لئے توبے کا دروازہ مرتے دم تک کھلا ہوتا ہے-
جماعت اسلامی کے رہنماؤں پر جو الزامات لگے ہیں وہ ناقابل یقین ہیں انہی الزامات کے خلاف مظاہرین کو فائرنگ کر کے قتل کیا جا رہا ہے اور لگ بھگ اسی سے سو افراد ہلاک ہو چکے ہیں-
بنگلہ دیش میں جماعت اسلامی کے رہنماء کو انیس سو ستر، اکہتر کی لڑائی کے دوران ہونے والے ’جنگی جرائم‘ پر سزائے موت سنائے جانے کے بعد شروع ہوے والے ہنگاموں میں سینکڑوں لوگ ہلاک ہو چکے ہیں۔ بنگلہ دیش میں جنگی جرائم کے ٹریبیونل سے ملنے والی سزاؤں کے بارے میں رائے عامہ کافی خلاف ہے اس نام نہاد ٹریبونل نے اس سے قبل جماعت اسلامی کے ڈپٹی سیکرٹری جنرل عبدالقادر
ملا کو 5فروری 2013ء عمر قید کی سزا سنائی جب کہ جماعت کے ایک سابق رکن اور ممبرپارلیمان ابوالکلام آزاد کو ان کی غیرحاضری میں 21جنوری 2013ء کو سزائے موت سنائی تھی۔ اب جماعت کے نائب امیر اور بنگلہ دیش کے معروف ترین عالم دین، مبّلغ اسلام، مفسرقرآن اور شعلہ نوا وہردل عزیز خطیب سابق رکن پارلیمان مولانا دلاور حسین سعیدی کو سزائے موت سنا دی ہے- اس ظلم و تشدد مین جماعت پر مقدمات چلائے گئے رہنماانتہائی گھناؤنے اور ناقابل یقین الزامات لگا کر انہیں سزائے موت سنا دی گئی حالانکہ انہی کے ساتھ اس سے پہلے عوامی لیگ انتخابی اتحاد بھی کر چکی ہے قتل و غارتگری تباہی و بربادی کی داستانیںجنمیں مکتی باہنی سر فہرست ہے اور یقینا جماعت کے اہلکاروں نے بھی اپنے موقف کی حمایت میں ظلم و تشدد کیا ہوگا - لیکن اگر ایک فریق کو محض اس لئے معاف کر دیا گیا ہے اور کوئی مواخذہ نہیں ہے کہ وہ بنگلہ دیش کے حامی تھے تو جماعت اسلامی کے کردہ یا نا کردہ گناہوں کا حساب بے باق کرنیکی ضرورت کیوں پڑ گئی -د یہ جنگی ٹریبونل ہرگز غیر جانبدار نہیں ہیں اور نہ ہی انصاف کے تقاضوں کو پورا کرتے ہیں- جنرل حسین محمد ارشاد جو حسینہ کے حامی ہین انہوں نے بھی اس ٹریبونل اور سزا پر کڑی تنقید کی ہے- یوں لگتا ہے حسینہ نے اپنی مصیبت کو خود دعوت دی ہے عوام کے رد عمل ، غم اور غصے سے بنگلہ دیش جہاں خانہ جنگی کی طرف جارہا ہے وہیں یہ ایک اور انقلاب کا پیش خیمہ بھی بن سکتا ہے-میری تو دلی دعا ہے کہ حسینہ ہوش کے ناخن لے اور گھڑے مردے اکھاڑنے سے پر ہیز کرے ---
Abida Rahmani <abidarahmani@yahoo.com>
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عابدہ رحمانی
مشرقی پاکستان ،پاکستان کے بازو کو ٹوٹتے ہوئے اور اسکو بنگلہ دیش بنتے ہوئے میں نے اپنی ان گناہگار آنکھوں سے دیکھا اور دل کی گہرائیوں سے محسوس کیا -ڈھاکے میں بھرا پرا گھر اور جائدادیں چھوڑ کر جانیں بچا کر مغربی پاکستان یا موجودہ پاکستان آئے- مدتوں تک میرے منہ پر بنگلہ دیش کا نام نہیں اتا تھا اور یہ نام ادا کرتے ہوئے دل سے درد کی شدید ٹھیس سی اٹھتی تھی- لیکن بنگلہ دیش پچھلے 41 سال سے ایک حقیقت ہے اور تمام قتل وخون، تباہی و بربادی اور ماضی کی غلطیوں ، تلخیوں کو بھلا کر ہم اس پر مطمئن ھوئے کہ وہ ہمارا برادر اسلامی ملک ہے - 41 سال گزرنے کے بعد عوامی لیگ اور حسینہ واجد کواز سر نو یہ اذیت شروع ہوئی کہ جماعت اسلامی کو متحدہ پاکستان کی حمائت اور بنگلہ دیش کے قیام کی مخالفت کی کڑی سزا دی جائے- یہ ایک تلخ حقیقت ہے کہ جماعت اسلامی نے متحدہ پاکستان کی حمائت کی تھی اور بنگلہ دیش کے قیام کی مخالفت کرتے ہوئے اپنے اس مقصد کے لئے غیر بنگالیوں کے ہمراہ بے پناہ قربانیاں دی تھیں -انکے گروپ الشمس اور البدر کا مکتی باہنی کی قتل گاہوں میں غیر بنگالیوں اور پاکستانی فوجیوں کے ہمراہ بے دریغ خون بہایا گیا تھا - تباہی و بربادی انکا مقدر ٹہری-انکا قصور محض متحدہ پاکستان کا دفاع تھا وہ اس ملک کی تقسیم اور نئے ملک کی تشکیل کے خلاف تھے انکا یہ فعل اسوقت پاکستان کی حبالوطنی کے لئے تھا -
بنگلہ دیش کے معرض وجود میں آنے کے بعد یہ جماعت اسلامی بنگلہ دیش کے نام سے اپنے تحریکی اور سیاسی کام نبھانے لگی - میرا پھر ڈھاکہ یا بنگلہ دیش جانا تو نہیں ہوا لیکن شمالی امریکہ میں جن بنگالی بھائی بہنوں سے تعلق قائم ہوا تو انکے اسلامی تشخص اور گرم جوشی کو دیکھ کر بیحد خوشی ہوئی وہ لوگ ماشاءاللہ دینی کاموں میں کافی سر گرم اور پیش پیش ہیں اور انکا اسلامی تشخص لا جواب ہے- جماعت اسلامی نے اپنے ملک میں لادینی اور سیکولر نظریات کی توڑ کی اور اسلامی تشخص اور نظریات کو قائم کرنیکی جدوجہد جاری رکھی - معاشی ، تعلیمی اور فلاحی میدانوں میں اپنی کوششیں جاری رکھیں- گو کہ یہ اپنے ملک کی سیاست میں کافی متحرک جماعت ہے بلکہ عوامی لیگ کی مخالف پارٹی میں بی این پی کے ساتھ انکا اتحاد ہے- اور 2001 میں ایوان اقتدار کا حصہ بنے-اور اچھی کارکردگی دکھائی اپنی اہلیت اور ایمانداری سےعوام کا دل جیتا جماعت کے امیر مطیع الرحمن نظامی اور سکرٹری جنرل علی احسن مجاہد مرکزی کابینہ کے رکن تھے انکی کارکردگی ، شرافت و دیانت کا پورا بنگلہ دیش معترف ہے--ٹرانسپیرنسی انٹرنیشنل نے بھی انکی بیحد تعریف کی-
41 - سال گزرنے کے بعد عوامی لیگ غالبا پھر ایک بار بنگلہ دیش میں اپنا زور اور قوت دکھا رہی ہے اور اپنے پرانے حساب بیباق کر رہی ہے- اگر واقعی انصاف کیا جائے تو حقیقت یہ ہے کہ مکتی باہنی نے جو ظلم و تشدد کیا تھا وہ بے حساب اور بے پناہ ہے- اسکا حساب تو اب شائد روز قیامت ہی ہوگا- وقت کے ساتھ کافی کچھ بدل چکا تھا اور بہت سے تائب بھی ہوگئے - ہیں تو مسلمان ہی اور مسلمانوں کے لئے توبے کا دروازہ مرتے دم تک کھلا ہوتا ہے-
جماعت اسلامی کے رہنماؤں پر جو الزامات لگے ہیں وہ ناقابل یقین ہیں انہی الزامات کے خلاف مظاہرین کو فائرنگ کر کے قتل کیا جا رہا ہے اور لگ بھگ اسی سے سو افراد ہلاک ہو چکے ہیں-
بنگلہ دیش میں جماعت اسلامی کے رہنماء کو انیس سو ستر، اکہتر کی لڑائی کے دوران ہونے والے ’جنگی جرائم‘ پر سزائے موت سنائے جانے کے بعد شروع ہوے والے ہنگاموں میں سینکڑوں لوگ ہلاک ہو چکے ہیں۔ بنگلہ دیش میں جنگی جرائم کے ٹریبیونل سے ملنے والی سزاؤں کے بارے میں رائے عامہ کافی خلاف ہے اس نام نہاد ٹریبونل نے اس سے قبل جماعت اسلامی کے ڈپٹی سیکرٹری جنرل عبدالقادر
ملا کو 5فروری 2013ء عمر قید کی سزا سنائی جب کہ جماعت کے ایک سابق رکن اور ممبرپارلیمان ابوالکلام آزاد کو ان کی غیرحاضری میں 21جنوری 2013ء کو سزائے موت سنائی تھی۔ اب جماعت کے نائب امیر اور بنگلہ دیش کے معروف ترین عالم دین، مبّلغ اسلام، مفسرقرآن اور شعلہ نوا وہردل عزیز خطیب سابق رکن پارلیمان مولانا دلاور حسین سعیدی کو سزائے موت سنا دی ہے- اس ظلم و تشدد مین جماعت پر مقدمات چلائے گئے رہنماانتہائی گھناؤنے اور ناقابل یقین الزامات لگا کر انہیں سزائے موت سنا دی گئی حالانکہ انہی کے ساتھ اس سے پہلے عوامی لیگ انتخابی اتحاد بھی کر چکی ہے قتل و غارتگری تباہی و بربادی کی داستانیںجنمیں مکتی باہنی سر فہرست ہے اور یقینا جماعت کے اہلکاروں نے بھی اپنے موقف کی حمایت میں ظلم و تشدد کیا ہوگا - لیکن اگر ایک فریق کو محض اس لئے معاف کر دیا گیا ہے اور کوئی مواخذہ نہیں ہے کہ وہ بنگلہ دیش کے حامی تھے تو جماعت اسلامی کے کردہ یا نا کردہ گناہوں کا حساب بے باق کرنیکی ضرورت کیوں پڑ گئی -د یہ جنگی ٹریبونل ہرگز غیر جانبدار نہیں ہیں اور نہ ہی انصاف کے تقاضوں کو پورا کرتے ہیں- جنرل حسین محمد ارشاد جو حسینہ کے حامی ہین انہوں نے بھی اس ٹریبونل اور سزا پر کڑی تنقید کی ہے- یوں لگتا ہے حسینہ نے اپنی مصیبت کو خود دعوت دی ہے عوام کے رد عمل ، غم اور غصے سے بنگلہ دیش جہاں خانہ جنگی کی طرف جارہا ہے وہیں یہ ایک اور انقلاب کا پیش خیمہ بھی بن سکتا ہے-میری تو دلی دعا ہے کہ حسینہ ہوش کے ناخن لے اور گھڑے مردے اکھاڑنے سے پر ہیز کرے ---
Abida Rahmani <abidarahmani@yahoo.com>
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Tuesday, 5 March 2013
Monday, 4 March 2013
Sunday, 3 March 2013
INDIAN MUJAHEDIN AUR TAHEQIQATI IDAREY - URDU TIMES
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